भाग एक - से अब आगे पढ़ेँ
पिछले लेख मेँ तो हुई शरीर की बात , लेकिन हम शरीर को नहीँ , जीवन जीते हैँ। उसका अर्थ ही इसलिए है क्योँकि शरीर के माध्यम से हम जीवन को जीते हैँ। इसका मतलब यह हुआ कि शरीर जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाला एक माध्यम है ।
जैसे ही हमारा यह शरीर समाज का सदस्य बनता है , वैसे ही जीवन की शुरूआत हो जाती है । जैसे ही हम अपने इस शरीर को समाज का हिस्सा बना देते हैँ , वैसे ही हम समाज के सारे तत्वोँ और मूल्योँ को आत्मसात करने के लिए बाध्य हो जाते हैँ। यह एक प्रकार से अपने ही हाथोँ से अपने ही ऊपर मछली पकड़ने का जाल डाल लेने जैसा है । यह जाल है - मान्यताओँ का , परंपराओँ का , धर्म का , रीति- रिवाजोँ का , सभ्यताओँ का , संस्कृतियोँ का , संस्कारोँ का , कानूनोँ का तथा और भी ना जाने किन - किन का ।
शरीर एक । जीवन भी एक । लेकिन लादे गए ये बोझ अनेक । यहीँ से शुरू हो जाती हैं - जीवन की विडंबनाएँ । दुनियाँ भर के चकल्लस , तनाव , आपाधापी तथा और भी न जाने क्या - क्या ।
क्या कोई उपाय है कि हम अपने इस शरीर की मासूमियत को बचाए रख सकेँ , कयोँकि इसी मासूमियत मेँ रहता है आनन्द का रस ।
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
बहुत सरल है हमारा जीवन ~ भाग एक
कितना सरल है हमारा जीवन , कितना सहज है इस जीवन का सारा गणित कि सब कुछ अपने आप ही होता चला जाता है ।
सांसोँ का आना- जाना , पलकोँ का गिरना - उठना और शरीर की हर उस क्रिया का होना , जो हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए अनिवार्य है । सब कुछ आँटोमैटिक । यहाँ तक कि हमारे शरीर ने भी अपनी क्षमताएं अपनी जरूरत के अनुसार विकसित कर ली हैँ।
उसने आंखोँ को एक कोटर मेँ सुरक्षित रखा है ताकि चोट लगने पर यह फूटे नहीँ । यदि नाक और कान को शरीर के बाहरी हिस्से मेँ रखा , तो उसे लोचदार बना दिया ताकि आसानी से टूट ना जाए । मस्तिष्क , जो जीवन का आधार है उसे कपाल जैसे कठोर आवरण मेँ ढंककर रखा । सचमुच कितनी अद्भुत निर्मिति है - हमारा यह शरीर इस प्रकृति की । बेहद जटिल किँतु स्वचालित ।
[शेष अगले भाग मेँ]
सांसोँ का आना- जाना , पलकोँ का गिरना - उठना और शरीर की हर उस क्रिया का होना , जो हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए अनिवार्य है । सब कुछ आँटोमैटिक । यहाँ तक कि हमारे शरीर ने भी अपनी क्षमताएं अपनी जरूरत के अनुसार विकसित कर ली हैँ।
उसने आंखोँ को एक कोटर मेँ सुरक्षित रखा है ताकि चोट लगने पर यह फूटे नहीँ । यदि नाक और कान को शरीर के बाहरी हिस्से मेँ रखा , तो उसे लोचदार बना दिया ताकि आसानी से टूट ना जाए । मस्तिष्क , जो जीवन का आधार है उसे कपाल जैसे कठोर आवरण मेँ ढंककर रखा । सचमुच कितनी अद्भुत निर्मिति है - हमारा यह शरीर इस प्रकृति की । बेहद जटिल किँतु स्वचालित ।
[शेष अगले भाग मेँ]
सोमवार, 6 दिसंबर 2010
प्रकृति और मानव मन-मस्तिष्क की क्षमता
प्रकृति और मानव मन- मस्तिष्क मेँ अनूठी क्षमता होती हैँ । यदि मनुष्य बुद्धि - विवेक से काम लेँ , उचित - अनुचित का विचार कर प्रकृति का उपयोग करेँ , तो वह सदैव वरदान के रूप मेँ कल्याणकारी होती है ।
सदगुण- दुर्गुण प्रत्येक व्यक्ति की अंतःचेतना मेँ विधमान रहते हैँ । मिट्टी मेँ उर्वरा शक्ति होती है । उसमेँ जैसा बीज बोया जाता है , वैसा ही फल आता है । ईश्वर और प्रकृति ने मनुष्य को जो शक्तियाँ प्रदान की हैँ , यदि उनका सदुपयोग किया जाए , तो असीमित सुख - समृद्धि से संपन्न बना जा सकता है ।
पृथ्वी की भाँति मनुष्य की कर्मभूमि भी उर्वरा है । यदि उसे सदाचारोँ से जोतेँ , उत्तम विचारोँ से सीँचेँ और सत्कार्योँ के बीज बोएं , तो पुण्य और कीर्ति की फसल लहलहाएगी । इसी तरह यदि मस्तिष्क की उर्वरता का भी हम ठीक से उपयोग करेँ , श्रेष्ठ चिंतन के बीज बोएं , बुद्धि से सीँचेँ , विवेक का उर्वरक डालेँ , तो नवनिर्माण की हरियाली जन्म लेगी ।
हमारे भीतर अन्नपूर्णा जैसी शक्ति है , जो हमारी आकांक्षाओँ को शांत कर सफलता प्रदान कर सकती है । प्रकृति का कार्य हमेँ साधनोँ से संपन्न करना है । उनके उपयोग की कला , सही- गलत के उपयोग का निर्णय करने के लिए उसने हमेँ बुद्धि एवं विवेक नामक दो दुर्लभ विभूतियां प्रदान की हैँ । व्यक्ति अपनी क्षमता और साधनोँ का समुचित उपयोग कर जीवन को श्रेष्ठ कार्योँ से कृतार्थ कर सकता है।
प्राकृतिक साधनोँ और मन- मस्तिष्क का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए , तो वह वरदान सिद्ध होता है , लेकिन दुरूपयोग करने पर अभिशाप के रूप मेँ सामने आते हैँ ।
सदगुण- दुर्गुण प्रत्येक व्यक्ति की अंतःचेतना मेँ विधमान रहते हैँ । मिट्टी मेँ उर्वरा शक्ति होती है । उसमेँ जैसा बीज बोया जाता है , वैसा ही फल आता है । ईश्वर और प्रकृति ने मनुष्य को जो शक्तियाँ प्रदान की हैँ , यदि उनका सदुपयोग किया जाए , तो असीमित सुख - समृद्धि से संपन्न बना जा सकता है ।
पृथ्वी की भाँति मनुष्य की कर्मभूमि भी उर्वरा है । यदि उसे सदाचारोँ से जोतेँ , उत्तम विचारोँ से सीँचेँ और सत्कार्योँ के बीज बोएं , तो पुण्य और कीर्ति की फसल लहलहाएगी । इसी तरह यदि मस्तिष्क की उर्वरता का भी हम ठीक से उपयोग करेँ , श्रेष्ठ चिंतन के बीज बोएं , बुद्धि से सीँचेँ , विवेक का उर्वरक डालेँ , तो नवनिर्माण की हरियाली जन्म लेगी ।
हमारे भीतर अन्नपूर्णा जैसी शक्ति है , जो हमारी आकांक्षाओँ को शांत कर सफलता प्रदान कर सकती है । प्रकृति का कार्य हमेँ साधनोँ से संपन्न करना है । उनके उपयोग की कला , सही- गलत के उपयोग का निर्णय करने के लिए उसने हमेँ बुद्धि एवं विवेक नामक दो दुर्लभ विभूतियां प्रदान की हैँ । व्यक्ति अपनी क्षमता और साधनोँ का समुचित उपयोग कर जीवन को श्रेष्ठ कार्योँ से कृतार्थ कर सकता है।
प्राकृतिक साधनोँ और मन- मस्तिष्क का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए , तो वह वरदान सिद्ध होता है , लेकिन दुरूपयोग करने पर अभिशाप के रूप मेँ सामने आते हैँ ।
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
सफलता और नैतिकता
प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह
याद रखना बेहतर होगा कि
सभी सफल व्यवसाय नैतिकता की नीँव पर आधारित होते हैँ ।
समस्त सफलताएँ कर्म की नीँव पर आधारित होती है ।
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
बुधवार, 24 नवंबर 2010
मनोस्थिति और अनुभूति
एक अच्छा , स्वच्छ मन
वाला व्यक्ति दूसरोँ की
विशेषतायेँ देखता है;
दूषित मन वाला व्यक्ति
दूसरोँ मेँ बुराई ही ढूँढता
हैँ;
शनिवार, 20 नवंबर 2010
वर्तमान और भविष्य
वर्तमान समय मेँ जो कुछ आपके हाथ मेँ है,
यदि आप उसको महत्व नहीँ देते तो जो भविष्य मेँ आपको मिलने वाला है,
उसका सम्मान कैसे कर सकेँगे?
बुधवार, 17 नवंबर 2010
प्रेम और पवित्रता
जहाँ प्रेम नहीँ, वहाँ शान्ति नहीँ हो सकती।
जहाँ पवित्रता नहीँ, वहाँ प्रेम नहीँ हो सकता।
शनिवार, 13 नवंबर 2010
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
सोमवार, 8 नवंबर 2010
परिवर्तनशीलता
जब प्रगति होती है तब परिवर्तन स्वभाविक है;
यदि आप परिवर्तन से डरते हैँ तो उन्नति कैसे हो सकती है?
शनिवार, 6 नवंबर 2010
आपका स्वभाव
आपके अपने स्वभाव के सिवाए कोई आपको दुःख नहीँ देता ;
अपना स्वभाव मधुर व प्रेममय बनायेँ तथा सबका दिल जीतेँ ;
बुधवार, 3 नवंबर 2010
अनमोल खुशियाँ
अपनी खुशियोँ के प्रत्येक क्षण का आनन्द लेँ;
ये वृद्धावस्था के लिए अच्छा सहारा साबित होते हैँ;
ये वृद्धावस्था के लिए अच्छा सहारा साबित होते हैँ;
सोमवार, 1 नवंबर 2010
शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
सफलता प्राप्ति
सफललता मन की शीतलता से उत्पन्न होती है।
ठण्डा लोहा ही गर्म लोहे को काट व मोड़ सकता हैँ।
ठण्डा लोहा ही गर्म लोहे को काट व मोड़ सकता हैँ।
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
आशावादी होना
आशावादी व्यक्ति हर आपदा मेँ एक अवसर देखता है;
निराशावादी व्यक्ति हर अवसर मेँ एक आपदा देखता है।
निराशावादी व्यक्ति हर अवसर मेँ एक आपदा देखता है।
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