tag:blogger.com,1999:blog-27870496022256706892024-03-13T16:59:25.532+05:30प्रेरक विचारDR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-57923536797274568432014-01-18T19:36:00.001+05:302014-01-18T19:39:38.790+05:30आप नकारात्मक विचारों के प्रवाह को कैसे रोक सकते हैं? नकारात्मक विचार तीन कारणों से होते हैं
<p>● अगर
रक्त का प्रवाह सही नहीं है।</p>
<p>● लसीका प्रणाली (lymphatic system)
सही नहीं है।<p/>
<p>● मल त्याग (bowel moment) अनियमित है।</p>
<p>आप
फल आहार से अपनी आत्रें साफ कर सकते हैं। प्राणायाम से भी मदद
मिलेगी। कुछ दिनों के लिए त्रिफला (आयुर्वेदिक औषधि) ले सकते
हैं। योगा, प्राणायाम और ध्यान करो। तुम्हे फर्क अवश्य महसूस होगा।
सामुहिक साधना से भी मदद मिलेगी।</p>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-67383966101450689052013-04-11T19:20:00.001+05:302013-05-03T21:52:20.885+05:30दु:ख एवं अशांति<font color="red"> दु:खी मस्तिष्क दु:ख का व सुखी मस्तिष्क सुख का सृजन करता है।
शांत मन शांति का एवं अशांत मन अशांति का सृजन करता है।</font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-27250166420628182582012-02-09T16:25:00.001+05:302012-02-09T16:27:58.232+05:30प्रेम को समझो<font color="brown"><br />आप सचमुच किसी से प्रेम<br />करते हो या प्रेमी के साथ <br />रहना चाहते हो ;<br />तब आप एक दूसरे की <br />उपेक्षा मत करो। <br /><br />इस तरह जियो कि अगला<br />एक नया व्यक्ति है और हर<br />रोज तुम्हेँ उसे रिझाना है,<br />मनाना है। एक दूसरे के <br />मालिक मत बनो। </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-26836585938433052062012-02-09T15:57:00.001+05:302012-02-09T16:07:09.828+05:30आवेश और आत्मबल<font color="red"><br />आवेश और क्रोध को वश मेँ कर लेने से शक्ति बढ़ती है;<br /><br />जब ये आवेश वश मेँ आ जाता है तो इसको आत्मबल मेँ बदला जा सकता है; </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-58782690981552130902011-12-17T21:25:00.003+05:302011-12-19T23:45:17.960+05:30जिँदगी<font color="red"><br />जिंदगी वैसी नहीँ है, जैसी आप कामना करते है।<br />यह तो वैसी है, जैसा आप इसे बनाते हैँ। </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-56837660343099362392011-11-30T23:16:00.002+05:302011-11-30T23:20:45.464+05:30जैसा विचार वैसा कार्य<font color="brown"><br />मनुष्य के कार्य आमतौर से उसके विचारोँ के परिणाम होते हैँ। यह विचार आन्तरिक विश्वासोँ का परिणाम होते हैँ। <br /><a name='more'></a> <br />दूसरे शब्दोँ मेँ इसी बात को योँ कहा जा सकता है कि आन्तरिक भावनाओँ की प्रेरणा से ही विचार और कार्यो की उत्पत्ति होती है, जिसका हृदय जैसा होगा वह वैसे ही विचार करेगा, वैसे कार्यो मेँ प्रवृति रहेगी। </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-65753995665135965422011-10-11T19:59:00.004+05:302011-10-11T20:14:29.160+05:30आलसी और परिश्रमी<font color="brown"><br />आलसी मनुष्य अपने लक्ष्य तक कभी <br />नहीँ पहुँच पाता, किँतु कठोर परिश्रम करने वाला,<br />अपने प्रत्येक पल का सार्थक उपयोग करने वाला,<br />कभी भी अभावग्रस्त नहीँ रहता। </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-59085620345336776312011-09-28T21:30:00.002+05:302011-09-28T21:54:13.470+05:30प्रेम और द्वेष<font color="red"><br />मैँने प्रेम करने का निश्चय किया है;<br /><br />द्वेष करना तो बहुत बोझिल काम है; </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-35397737964539915522011-09-14T22:41:00.001+05:302011-09-14T22:46:25.227+05:30व्यक्तित्व<font color="brown"><br />बुद्विमान व्यक्तियोँ की<br />प्रंशसा की जाती है;<br /><br />धनवान व्यक्तियोँ से ईर्ष्या<br />की जाती है;<br /><br />बलशाली व्यक्तियोँ से डरा<br />जाता है,<br /><br />लेकिन विश्वास केवल <br />चरित्रवान व्यक्तियोँ पर<br />ही किया जाता है; </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-47730020724087540302011-09-05T20:27:00.001+05:302011-09-05T20:36:19.762+05:30दीर्घायु और बूढ़ापा<font color="red"><br />इंसान दीर्घायु होने की कामना तो करता है ;<br /><br />मगर बूढ़ा होने से भयभीत<br />रहता है ; </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-46352965158448742732011-08-06T20:26:00.005+05:302011-08-06T21:56:50.548+05:30सांसो की सरगम से उपजा उल्लास<a href="http://2.bp.blogspot.com/-zYAxLF86NEM/Tj1X7QRdZwI/AAAAAAAAAKA/Gja3EWWLPfU/s1600/IMG0011A.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 128px; height: 160px;" src="http://2.bp.blogspot.com/-zYAxLF86NEM/Tj1X7QRdZwI/AAAAAAAAAKA/Gja3EWWLPfU/s200/IMG0011A.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5637758984029824770" /></a><br />स्वर विज्ञान भी वायुतत्व <br />के सूक्ष्म उपयोग का विज्ञान<br />है जिसके द्वारा हम बहुत से<br />रोगोँ से अपने आपको <br />बचाकर रख सकते हैँ और<br />रोगी होने पर स्वर साधना<br />की मदद से उन रोगोँ को दूर<br />भी कर सकते हैँ। <a name='more'></a><br /><br /><font color="blue"><br />स्वर साधना का आधार<br />सांस लेना और सांस को<br />बाहर छोड़ने की गति <br />स्वरोदय विज्ञान है । </font> <br /><br />हमारे शरीर मेँ दिन-रात<br />तेज गति से सांस लेना और<br />सांस छोड़ना एक ही समय <br />मेँ नाक के दोनोँ छिद्रोँ से <br />साधारणतः नही चलता।<br />बल्कि वह तो बारी-बारी से<br />एक निश्चित समय तक <br />अलग-अलग नाक के दोनोँ<br />छिद्रोँ से चलता है। सांस का<br />आना जाना जब एक छिद्र<br />से बंद होता है और दूसरे<br />से शुरू होता है तो उसको<br />स्वरोदयं कहा जाता है ।<br /><br />हर नथुने मेँ स्वरोदय होने<br />के बाद वो साधारणतः एक<br />घन्टे तक मौजूद रहता है ।<br />इसके बाद दूसरे नाक के <br />छिद्र से सांस चलना शुरू<br />होता है और वो भी एक <br />घन्टे तक रहता है। ये क्रम<br />रात और दिन चलता रहता<br />है। <br />जब नाक के बाएं छिद्र से<br />सांस चलती है तब उसे<br />इड़ा मेँ चलना अथवा<br />चंद्रस्वर कहा जाता है और<br />जब नाक के दाहिने छिद्र से<br />सांस चलती है तो उसे<br />पिँगला कहते हैँ और नाक के<br />दोनो छिद्रोँ से जब एक ही<br />समय मेँ बराबर सांस<br />चलती है तब उसको<br />सुषुम्ना मेँ चलना कहा<br />जाता है ।<br /><br />चंद्रस्वर शरीर को ठंडक<br />पहुँचाता है। इस स्वर मेँ<br />तरल पदार्थ पीने चाहिए<br />और ज्यादा महनत का काम<br />नहीँ करना चाहिए।<br /><br />जब नाक के दाईँ तरफ के<br />छिद्र से सांस चल रही हो<br />अर्थात सूर्य स्वर चल रहा<br />हो तो भोजन और ज्यादा<br />महनत वाले काम करने<br />चाहिए क्योँकि यह स्वर<br />शरीर मेँ ऊष्मा उत्पन्न<br />करता है ।<br /><br />नाक के जिस तरफ के छिद्र<br />से स्वर (सांस) चल रहा हो<br />तो उसे दबाकर बंद करने से<br />दूसरा स्वर चलने लगता है।<br /><br />जिस तरफ के नाक के छिद्र<br />से स्वर चल रहा हो उसी <br />तरफ करवट लेकर लेटन से<br />दूसरा स्वर चलने लगता है।<br /><br />ज्यादा महनत करने , दौड़ने<br />से और प्राणायाम आदि<br />करने से स्वर बदल जाता <br />है। नाड़ी शोधन प्राणायाम<br />आदि करने से स्वर बदल<br />जाता है। नाड़ी शोधन <br />प्राणायाम करने से स्वर पर<br />काबू हो जाता है। इससे <br />सर्दियोँ मेँ सर्दी कम लगती<br />है और गर्मियोँ मेँ गर्मी भी<br />कम लगती है।DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-27440485434417775602011-08-02T17:14:00.005+05:302011-08-02T18:26:00.993+05:30गुस्से के सात रंग<font color="red"><br />
जिँदगी मेँ तबाही और<br />
नुकसान के पीछे की वजह<br />
को गुस्सा बताने वाले<br />
पारंपरिक गुरूओँ के<br />
सिद्वान्तोँ को अब एंगर<br />
मैनेजमेँट के गुरू चुनौती दे<br />
रहेँ हैँ । वे कहते हैँ , हर<br />
कामयाबी के पीछे होता है <br />
गुस्सा । <a name='more'></a> <br />
<br />
इन गुरूओँ ने गुस्से के सात<br />
प्रकार बताए हैँ - </font><br />
<br />
<font color="blue"><br />
आकस्मिक गुस्सा<br />
आदतन गुस्सा<br />
अपमान का गुस्सा<br />
शक का गुस्सा<br />
सकारात्मक गुस्सा <br />
आचरण संबधी गुस्सा<br />
सोचा-समझा गुस्सा </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-12932363173748865222011-07-29T18:57:00.004+05:302011-08-02T18:37:08.081+05:30सत्कर्मोँ से ही कल्याण<font color="red"><br />
एक बार राजा जनक मुनि पाराशर जी के सत्संग के लिए पहुँचे । उन्होँने मुनिश्री से पूछा , 'मुनिवर , कौन-सा कर्म संपूर्ण प्राणियोँ के लिए लोक व परलोक , दोनोँ मेँ कल्याणकारी है ?'<br />
<a name='more'></a><br />
मुनि ने कहा , 'धर्मानुसार सत्कर्म ही लोक-परलोक के लिए कल्याणकारी होते हैँ ।<br />
जो मनुष्य मन , वाणी , नेत्र और क्रिया द्वारा सत्कर्म करते हैँ , शास्त्र विरूद्व मनमाने मर्यादाहीन आचरण से बचते हैँ , उन्हेँ इस लोक मेँ भी शांति मिलती है और परलोक मेँ भी ।'<br />
<br />
मुनि उपदेश देते हुए कहते हैँ , 'आयु दुर्लभ वस्तु है । इसे पाकर आत्मा को नीचे नहीँ गिरना चाहिए , बल्कि सत्कर्मोँ का अनुष्ठान करते हुए ऊँचे उठने का प्रयत्न करना चाहिए । किसी भी प्रकार के पाप कर्म से सदैव बचना चाहिए । पाप कर्म चाह जान-बूझकर किया हो अथवा अनजाने मेँ , किसी न किसी रूप मेँ कष्टदायक होता है । अनजाने मेँ जो हिँसा होती है , उससे किसी के हृदय को दुःख पहुँचता है , वह तो एक बार के प्रायश्चित से मुक्ति दिला सकती है , किँतु स्वेच्छा से अथवा अहंकारपूर्वक किए गए दुष्कर्मोँ का तो घोर दुष्परिणाम भोगना पड़ता है । अतः सत्कर्म ही लोक-परलोक के कल्याण का साधन हैँ ।' </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-81821391329598497632011-07-29T17:54:00.000+05:302011-07-29T17:56:29.266+05:30काम और पुरस्कार<font color="brown"><br />काम करने का सबसे बड़ा <br />पुरस्कार और अधिक काम <br />करने का अवसर है । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-55252222683311619242011-05-31T22:56:00.000+05:302011-05-31T22:56:16.474+05:30विश्वास और प्रार्थना<font color="brown"><br />
"विश्वास और प्रार्थना " आत्मा के दो विटामिन है;<br />
<br />
कोई भी व्यक्ति इनके बिना स्वस्थ जीवनयापन नहीँ कर सकता है । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-36876086129832172772011-05-20T23:04:00.000+05:302011-05-20T23:04:46.102+05:30भाईचारे की आवश्यकता<font color="red"><br />
हमेँ भाईयोँ की तरह मिलकर रहना अवश्य सीखना होगा अन्यथा मूर्खोँ की तरह सभी बरबाद हो जाएंगे । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-54775886522671756002011-05-15T19:14:00.001+05:302011-08-02T18:32:10.417+05:30खुद पर भरोसा रखेँ<font color="red"><br />
अपने आप पर यदि हमेँ विश्वास नहीँ है तो सफलता हमसे कोसोँ दूर रहती है । विश्वास ऐसी शक्ति है जो हमेँ कठिनाइयोँ मेँ संबल प्रदान करता है , हमारा मार्गदर्शन करता है । हमेँ प्रेरणा और उत्साह से भर देता है ।<br />
<a name='more'></a><br />
हमारी आंतरिक दृष्टि और हमारा विश्वास उन शक्तियोँ और साधनोँ को देख लेते है , जो भय तथा शंकाओँ के कारण हमारी वाह्रय आंखोँ से ओझल रहते हैँ । हमारी आंतरिक दृष्टि मेँ दृढ़ विश्वास छिपा रहता है । उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि हमारा वास्तविक मार्ग कौन सा है और जो कठिनाइयाँ उस मार्ग पर चलते समय हमारे सामने आएंगी उनका निराकरण किस प्रकार किया जा सकेगा ।<br />
<br />
आप अपने को किसी भी काम के अयोग्य न समझेँ , किसी भी संदेह को अपने मन मेँ स्थान न देँ और विश्वास रखेँ कि आप जिस काम को करना चाहते हैँ , उसे पूरा करने की आपमेँ योग्यता है , शक्ति है , सामर्थ्य है । यह विश्वास ही आपको सफल बनाता है । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-90591477650444649402011-05-14T09:13:00.000+05:302011-05-14T09:13:18.263+05:30भूत, भविष्य और वर्तमान<font color="brown"><br />
जो बीत गया है उसकी परवाह न करेँ, <br />
जो आने वाला है उसका स्वप्न न देखेँ ,<br />
अपना सारा ध्यान वर्तमान पर केन्द्रित करेँ । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-46181355682507804882011-04-05T22:24:00.000+05:302011-04-05T22:24:00.860+05:30आशा और प्रयास<font color="red"><br />
जब दुनिया यह कहती है कि "हार मान लो" , तो <br />
<br />
आशा धीरे से कान मेँ कहती है कि "एक बार फिर से प्रयास करो" । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-76592357002091692052011-04-05T22:09:00.000+05:302011-04-05T22:09:37.369+05:30प्रसन्नता और सन्तुलन<font color="brown"><br />
प्रसन्नता इस बात पर निर्भर करती है कि आप अपने जीवन के समीकरण को सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवोँ <br />
<br />
तथा मनोवृत्तियोँ के बीच किस प्रकार से सन्तुलित करते हैँ । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-22732418091654652802011-04-05T21:57:00.000+05:302011-04-05T21:57:39.358+05:30आशा और स्वास्थ्य<font color="red"><br />
जिसके पास स्वास्थ्य है , उसके पास आशा है ।<br />
<br />
जिसके पास आशा है , उसके पास सब कुछ है । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-20978211935435189502011-01-30T13:36:00.003+05:302011-01-30T13:39:34.506+05:30बुराईयाँ और सृज्जनता<font color="red"><br />
अगर आप अपने दिल और दिमाग के थोड़े से भी हिस्से को बुराईयोँ से रिक्त कर देगेँ<br />
<br />
तो वह रिक्त स्थान अपने आप सृज्जनता से भर जायेगा । </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-8319792265883348442011-01-18T15:08:00.000+05:302011-01-18T15:08:27.600+05:30स्वंय और ईश्वर मेँ विश्वास<font color="brown"><br />
आप ईश्वर मेँ तब तक विश्वास नहीँ कर सकेगेँ ;<br />
<br />
जब तक कि आप अपने आप मेँ विश्वास नहीँ करेगेँ ;<br />
</font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-84014958934781528402011-01-15T08:48:00.001+05:302011-01-15T08:49:56.499+05:30सुधार करना और चाहत<font color="blue"><br />
प्रत्येक व्यक्ति पूरी दुनिया को सुधारना चाहता है ;<br />
<br />
परन्तु प्रत्येक व्यक्ति स्वंय मेँ कोई सुधार करना नहीँ चाहता है ; </font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-2787049602225670689.post-1338399101519390382011-01-08T07:12:00.000+05:302011-01-08T07:12:08.035+05:30सफलता और सकारात्मकता<font color="red"><br />
एक व्यक्ति को सफल होने के लिए अति आवश्यक है कि उसमेँ सफलता की आस ; <br />
असफलता के डर से कहीँ अधिक हो ; <br />
</font>DR.ASHOK KUMARhttp://www.blogger.com/profile/01638850958512148573noreply@blogger.com0