प्रकृति और मानव मन- मस्तिष्क मेँ अनूठी क्षमता होती हैँ । यदि मनुष्य बुद्धि - विवेक से काम लेँ , उचित - अनुचित का विचार कर प्रकृति का उपयोग करेँ , तो वह सदैव वरदान के रूप मेँ कल्याणकारी होती है ।
सदगुण- दुर्गुण प्रत्येक व्यक्ति की अंतःचेतना मेँ विधमान रहते हैँ । मिट्टी मेँ उर्वरा शक्ति होती है । उसमेँ जैसा बीज बोया जाता है , वैसा ही फल आता है । ईश्वर और प्रकृति ने मनुष्य को जो शक्तियाँ प्रदान की हैँ , यदि उनका सदुपयोग किया जाए , तो असीमित सुख - समृद्धि से संपन्न बना जा सकता है ।
पृथ्वी की भाँति मनुष्य की कर्मभूमि भी उर्वरा है । यदि उसे सदाचारोँ से जोतेँ , उत्तम विचारोँ से सीँचेँ और सत्कार्योँ के बीज बोएं , तो पुण्य और कीर्ति की फसल लहलहाएगी । इसी तरह यदि मस्तिष्क की उर्वरता का भी हम ठीक से उपयोग करेँ , श्रेष्ठ चिंतन के बीज बोएं , बुद्धि से सीँचेँ , विवेक का उर्वरक डालेँ , तो नवनिर्माण की हरियाली जन्म लेगी ।
हमारे भीतर अन्नपूर्णा जैसी शक्ति है , जो हमारी आकांक्षाओँ को शांत कर सफलता प्रदान कर सकती है । प्रकृति का कार्य हमेँ साधनोँ से संपन्न करना है । उनके उपयोग की कला , सही- गलत के उपयोग का निर्णय करने के लिए उसने हमेँ बुद्धि एवं विवेक नामक दो दुर्लभ विभूतियां प्रदान की हैँ । व्यक्ति अपनी क्षमता और साधनोँ का समुचित उपयोग कर जीवन को श्रेष्ठ कार्योँ से कृतार्थ कर सकता है।
प्राकृतिक साधनोँ और मन- मस्तिष्क का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए , तो वह वरदान सिद्ध होता है , लेकिन दुरूपयोग करने पर अभिशाप के रूप मेँ सामने आते हैँ ।
सोमवार, 6 दिसंबर 2010
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7 टिप्पणियां:
Bahut sachhi aur achhi baaten.....
सत्यवचन। धन्यवाद।
विवेक का स्वस्थ चिंतन प्रस्तूत किया है। बधाई
nice post.
अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए
फ़ारूख़ क़ैसर की एक ग़ज़ल , जो दिल को छूते हुए आत्मा में जा समाती है ।
प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य बताता हुआ ज्ञानवर्धक एवं प्रेरक लेख
बहुत अच्छा प्रस्तुतिकरण
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
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