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शनिवार, 6 अगस्त 2011

सांसो की सरगम से उपजा उल्लास


स्वर विज्ञान भी वायुतत्व
के सूक्ष्म उपयोग का विज्ञान
है जिसके द्वारा हम बहुत से
रोगोँ से अपने आपको
बचाकर रख सकते हैँ और
रोगी होने पर स्वर साधना
की मदद से उन रोगोँ को दूर
भी कर सकते हैँ।


स्वर साधना का आधार
सांस लेना और सांस को
बाहर छोड़ने की गति
स्वरोदय विज्ञान है ।


हमारे शरीर मेँ दिन-रात
तेज गति से सांस लेना और
सांस छोड़ना एक ही समय
मेँ नाक के दोनोँ छिद्रोँ से
साधारणतः नही चलता।
बल्कि वह तो बारी-बारी से
एक निश्चित समय तक
अलग-अलग नाक के दोनोँ
छिद्रोँ से चलता है। सांस का
आना जाना जब एक छिद्र
से बंद होता है और दूसरे
से शुरू होता है तो उसको
स्वरोदयं कहा जाता है ।

हर नथुने मेँ स्वरोदय होने
के बाद वो साधारणतः एक
घन्टे तक मौजूद रहता है ।
इसके बाद दूसरे नाक के
छिद्र से सांस चलना शुरू
होता है और वो भी एक
घन्टे तक रहता है। ये क्रम
रात और दिन चलता रहता
है।
जब नाक के बाएं छिद्र से
सांस चलती है तब उसे
इड़ा मेँ चलना अथवा
चंद्रस्वर कहा जाता है और
जब नाक के दाहिने छिद्र से
सांस चलती है तो उसे
पिँगला कहते हैँ और नाक के
दोनो छिद्रोँ से जब एक ही
समय मेँ बराबर सांस
चलती है तब उसको
सुषुम्ना मेँ चलना कहा
जाता है ।

चंद्रस्वर शरीर को ठंडक
पहुँचाता है। इस स्वर मेँ
तरल पदार्थ पीने चाहिए
और ज्यादा महनत का काम
नहीँ करना चाहिए।

जब नाक के दाईँ तरफ के
छिद्र से सांस चल रही हो
अर्थात सूर्य स्वर चल रहा
हो तो भोजन और ज्यादा
महनत वाले काम करने
चाहिए क्योँकि यह स्वर
शरीर मेँ ऊष्मा उत्पन्न
करता है ।

नाक के जिस तरफ के छिद्र
से स्वर (सांस) चल रहा हो
तो उसे दबाकर बंद करने से
दूसरा स्वर चलने लगता है।

जिस तरफ के नाक के छिद्र
से स्वर चल रहा हो उसी
तरफ करवट लेकर लेटन से
दूसरा स्वर चलने लगता है।

ज्यादा महनत करने , दौड़ने
से और प्राणायाम आदि
करने से स्वर बदल जाता
है। नाड़ी शोधन प्राणायाम
आदि करने से स्वर बदल
जाता है। नाड़ी शोधन
प्राणायाम करने से स्वर पर
काबू हो जाता है। इससे
सर्दियोँ मेँ सर्दी कम लगती
है और गर्मियोँ मेँ गर्मी भी
कम लगती है।

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